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चीन की हरकतें

जयपुर से डा. दुष्यन्त कौशिक ने लिखा- 'पत्रिका के २८ अगस्त अंक में चीन को लेकर जो सामग्री प्रकाशित की गई, वह चीन की चालबाजियों का कच्चा चिट्ठा है। चीन की हरकतें नई तो नहीं हैं, लेकिन अब उसने नए मुद्दे उठाने शुरू कर दिए हैं। जैसे कश्मीर का मुद्दा। पाकिस्तान के साथ उसकी दोस्ती पुरानी है। फिर भी कश्मीर मुद्दे को वह दोनों देशों का अन्दरूनी मामला बताता रहा है। पहले उसकी पैंतरेबाजियां अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, लद्दाख क्षेत्रों तक थीं। अब कश्मीर मुद्दे को चीन ने बहुत सोच-समझाकर उठाया है। वह भारत को उकसाना चाहता है। पर धन्य हैं हम और हमारी सरकार। आज भी हमारा रवैया 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' जैसा बना हुआ है। एक बार हम अपनी पीठ में छुरा घुपवा चुके हैं। अब दूसरी बार चीन हमारे सीने में ही खंजर घोंपने को आमादा है।'


प्रिय पाठकगण! भारत की उत्तरी सैन्य कमान के कमाण्डर लेफ्टिनेंट जनरल बी।एस. जसवाल को चीन का वीजा देने से इनकार का मामला हाल ही सुर्खियों में आया। रक्षा विशेषज्ञों, राजनीतिक विश्लेषकों और कूटनीतिज्ञों के बीच यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। दूसरी ओर चीन की हरकतों की नई-नई जानकारियां लगातार उजागर हो रही हैं। ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए? अनेक लोग महसूस करते हैं कि भारत-चीन सम्बन्धों पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है। चीन की नई गतिविधियों और भारत के रवैए को लेकर पाठकों ने जबरदस्त प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं, जो दोनों देशों के रिश्तों की समीक्षा के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।

अहमदाबाद से प्रो. दीपक सोनी ने लिखा- 'लेफ्टिनेंट जनरल जसवाल के बहाने चीन ने कश्मीर मुद्दे पर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं कि वह पाकिस्तान के साथ है। हालांकि चीन के अब तक के रुख से भी साफ जाहिर था कि वह भारत के साथ नहीं है। लेकिन इतने स्पष्ट तौर पर उसने यह बात कभी स्वीकार नहीं की थी। यानी कश्मीर मसले पर चीन ने भारत के समक्ष दोहरा खतरा पैदा कर दिया है। एक, कूटनीतिक स्तर पर और दूसरा सामरिक स्तर पर। 'न्यूयार्क टाइम्स' ने हाल ही यह उजागर किया कि पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगिट-बलिस्तान क्षेत्र का नियंत्रण चीन को सौंप दिया है। चीन यहां रेल और सड़क मार्ग बनवा रहा है। यह क्षेत्र विधिक तौर जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा है। इन तथ्यों की रोशनी में भारत की कूटनीति और रक्षा नीति दोनों फेल साबित हो रही हैं।'


कोटा के दीपेन्द्र सिंह ने लिखा- 'लेफ्टिनेंट जसवाल को वीजा से इनकार करना भारत का अपमान है। आखिर जसवाल सरकारी यात्रा पर बीजिंग जाने वाले थे। इस यात्रा के लिए वार्षिक रक्षा वार्ता के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा समझाौते के लिए आपसी सहमति बनी थी। इसमें तय हुआ था कि दोनों देश एक-दूसरे के जनरल स्तर के सैन्य अधिकारी भेजेंगे। चीन का इससे पलट जाना अन्तरराष्ट्रीय कूटनीतिक संहिता के खिलाफ है।'इंदौर से शैलेन्द्र कुमार 'भारतीय' ने लिखा- 'चीन गरम और भारत नरम' यह नीति आखिर कब तक चलेगी? यह हमारी सैन्य गुप्तचर सेवा की नाकामी ही कही जाएगी कि गिलगित क्षेत्र में चीनी गतिविधियों की जानकारी हमें अमरीका से मिल रही है। फर्ज करें कि हमारे गुप्तचरों को यह जानकारी थी तो सवाल है, हमारी सरकार ने इस पर क्या कदम उठाया?'


जोधपुर से दामोदर अवस्थी ने लिखा- 'भारत को रक्षात्मक की बजाए आक्रामक कूटनीति अपनानी होगी। हमारी रक्षात्मक कूटनीति का ही यह नतीजा है कि आज चीन हमारे सिर (कश्मीर) पर आ बैठा है। 'चाणक्य नीति' भारत में ईजाद हुई, पर इस्तेमाल चीन कर रहा है, वह भी हमारे ही खिलाफ!'उदयपुर से गौरव मेहता ने लिखा- 'भारत को दक्षिण पूर्व एशिया खासकर, फिलीपींस, इण्डोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, बर्मा, नेपाल आदि देशों से मजबूत सम्बन्ध बनाने चाहिए। जापान, कोरिया जैसे विकसित राष्ट्रों को ज्यादा तरजीह देनी चाहिए।'


भोपाल से अजीज अहमद ने लिखा- 'चीन को जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की तो फिक्र है, लेकिन पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बलिस्तान के स्थानीय शिया मुस्लिमों की जरा भी फिक्र नहीं, जिनके लोकतांत्रिक अधिकार पाकिस्तान बेरहमी से कुचल रहा है।'


बेंगलूरु से निर्मल अलेक्सेन्द्र ने लिखा- 'चीन की कारगुजारियों की लम्बी फेहरिस्त है। चीन ने २००८ में रिकार्ड २७० बार भारत में घुसपैठ की। गत वर्ष जुलाई में भारतीय सीमा के भीतर चीनी लाल सेना फिर घुस आई और अपने देश का नाम लिख दिया। हिमाचल के स्पीति और जम्मू-कश्मीर के लद्दाख इलाकों में चीनी घुसपैठ हुई। अरुणाचल प्रदेश को चीन दक्षिण तिब्बत कहकर अपना क्षेत्र बताता है। सिक्किम को चीन २००३ में मान्यता दे चुका था। लेकिन यहां भी वह घुसपैठ करता रहता है। भारतीय सीमा क्षेत्र के पास मिसाइलें तान देता है। इन सबके जवाब में हमारे रक्षा मंत्री ए।के. एंटनी क्या कहते हैं- हमारे रक्षा सम्बन्धों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। चीन के साथ हमारे करीबी सम्बन्ध हैं। यह तो हद है। यह सहनशीलता नहीं कायरता है।'


श्रीगंगानगर से पवन बग्गा ने लिखा- 'हमें चीन से पूछना चाहिए कि वह पाकिस्तान को रक्षा सहायता क्यों देता है, जो आतंकवाद का जनक है। हम चीन से यह भी पूछें वह हमारी १९६२ में हथियाई ४३ हजार वर्ग किमी. भूमि कब लौटाएगा? हमें पूछना चाहिए कि चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता को कब समर्थन देगा? हम चीन से यह भी पूछें कि वह तिब्बतवासियों को लोकतांत्रिक अधिकारों से कब तक वंचित रखेगा? हम पूछें कि चीन भारतीय कश्मीरी नागरिकों और अरुणाचलवासियों को वीजा की सुविधा कब शुरू करेगा?'

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