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जनता से छल!

भिलाई से गौतम श्रीवास्तव ने लिखा-
'मैं यूनिवर्सिटी टॉपर रहा हूं। लेकिन कोई मुझ से पूछे कि बताओ साल भर में पेट्रोल की कीमतें कितनी बार बढ़ीं, तो मैं फेल हो जाऊंगा। सचमुच मुझे याद नहीं। देश में एक मात्र यही ऐसी चीज है जो असंख्य बार महंगी होती है। अपनी कार में पेट्रोल भरवाते हुए मैं कभी जान नहीं पाता, आज कितना पेट्रोल मिलेगा। कितने रुपए में कितना पेट्रोल? कुछ पता नहीं। पम्प के मीटर पर डिसप्ले होती संख्याएं बेमानी महसूस होती हैं। कल जो दाम था, आज नहीं। आज जो दाम है, कल भी कायम रहेंगे, कोई गारंटी नहीं। मेरे जैसे कई और लोग भी 'कंफ्यूज' रहते होंगे। कहीं ये तेल कंपनियों का षड़्यंत्र तो नहीं कि ग्राहक पेट्रोल की वास्तविक कीमत कभी याद ही न रख पाए। पेट्रोल पम्प वाले उन्हें मनमाफिक ढंग से लूटते रहें!'
कोलकाता से आशीष डागा ने लिखा- 'इस बात का रंज नहीं है कि पेट्रोल की कीमत फिर बढ़ा दी। इस बात का अफसोस है कि हमने जिन लोगों को चुना, उन्होंने ही हमें धोखा दिया। सिर्फ 24 घंटे! इतना भी सब्र नहीं रखा। उधर पांच राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित हुए और इधर पेट्रोल के दाम बढ़ा दिए। यह जनता का सरासर अपमान है।'
प्रिय पाठकगण! पिछले पखवाड़े पेट्रोल की कीमतें 5 रुपए प्रति लीटर बढ़ाई गईं। यह अब तक की सर्वाधिक बढ़ोतरी है। शायद इसीलिए इस विषय पर पाठकों की सर्वाधिक प्रतिक्रियाएं भी प्राप्त हुई हैं। क्या पेट्रोल की इतनी मूल्य वृद्धि उचित है? क्या भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय मूल्य वृद्धि के बावजूद नागरिकों को राहत पहुंचाने में सक्षम है? क्या पेट्रोल कंपनियों की दलीलों पर लोगों को भरोसा है? क्या सरकार का पेट्रोल के दामों पर सचमुच कोई नियंत्रण नहीं? पाठकों की प्रतिक्रियाओं में इन सवालों के जवाब समाहित हैं।
इंदौर से दीनबंधु आर्य  के अनुसार- 'वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी जनता को मूर्ख समझते हैं। पेट्रोल के दाम बढ़ाने पर उन्होंने जो तर्क दिया जरा उस पर गौर करें। मुखर्जी ने कहा- पेट्रोल की कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं। सरकार ने जून 2010  के बाद पेट्रोल को नियंत्रण मुक्त कर दिया। यानी मुखर्जी साहब जनता की नाराजगी को भांपकर उसे फुसलाने की कोशिश कर रहे हैं। कौन यकीन करेगा? हर कोई जानता है कि पेट्रोल के अन्तरराष्ट्रीय दाम जनवरी 2011 में ही बढ़ गए थे। तभी से तेल कंपनियां पेट्रोल महंगा करना चाहती थी, लेकिन सरकार ने उन्हें पांच राज्यों के चुनावों के कारण ऐसा करने की इजाजत नहीं दी। जैसे ही चुनाव परिणाम आए, सरकार ने तेल कंपनियों को हरी झडी दिखा दी।'
कोटा से रामसिंह तंवर ने लिखा-'तेल कंपनियां पिछले 4 माह से घाटा क्यों उठा रही थीं? अगर वे सरकार के नियंत्रण से मुक्त थीं तो उन्हें खुलासा करना चाहिए कि दाम बढ़ाने से उन्हें किसने रोक रखा था?'
जोधपुर से विक्रम परिहार ने लिखा- 'यह सही है कि किरीट पारिख समिति की सिफारिशों के अनुसार पेट्रोल के दाम तेल कंपनियां खुद तय करती हैं, लेकिन इसी समिति की यह भी सिफारिश थी कि दाम बढ़ाने से पूर्व सरकार की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। इसलिए यह साफ है कि सरकार ने जनवरी 2011 से 13 मई 2011 तक कंपनियों को अपने राजनीतिक स्वार्थ की खातिर रोके रखा। जैसे ही स्वार्थ पूरा हुआ, कंपनियों को लूट की इजाजत दे दी। यह राजनीति का घिनौना पक्ष है।'
ग्वालियर से मगन सिंह 'ज्वाला' के अनुसार 'तेल कंपनियां और सरकार दोनों मिलकर जनता को लूट रहे हैं। क्या तेल कंपनियां जनता को यह बताएगी कि उनकी बैलेंस शीट कब घाटे में रही? गत वर्ष देश की तीनों प्रमुख कंपनियों ने करोड़ों रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया। दूसरी तरफ सरकार पेट्रोल पर अंधाधुंध टैक्स लगाकर जनता की जेब काट रही है। दुनिया के विकसित और पिछड़े दोनों तरह के कई देशों से भारत सरकार पेट्रोल पर ज्यादा टैक्स वसूली करती है।'
होशंगाबाद से हेमन्त शर्मा ने लिखा- 'अगर केन्द्र व राज्य सरकारें दोनों मिलकर अपने-अपने हिस्से के टैक्स में कुछ कटौती कर दें तो वह अंतरराष्ट्रीय बाजार के उतार-चढ़ावों से जनता को मुक्त रख सकती हैं। आखिर क्या जरूरत है पेट्रोल पर सौ प्रतिशत टैक्स वसूली की?'
जयपुर से सुभाष हल्दिया ने लिखा- 'पेट्रोल आज आम जनता की जरूरत बन गया है। ऐसे में सरकारों को जनता के हित में फैसले करने चाहिए। इसके विपरीत राजस्थान में तो सरकार जनता से वादा करके भूल गई और उसने आज तक पेट्रोल पर न तो वेट की दर कम की न ही रोड सैस घटाया।' जबकि बाड़मेर में तेल उत्पादन के बाद राज्य सरकार ने रॉयल्टी के तौर पर गत वर्ष 1700 करोड़ रुपए कमाए।'
उज्जैन से पीताम्बर शुक्ला ने लिखा- 'हर बार पेट्रोल महंगा करने का कारण अंतरराष्ट्रीय मूल्य वृद्धि बताया जाता है, लेकिन इसका सारा बोझ जनता पर डालना उचित नहीं। सरकार अपनी टैक्स दरें घटाए और कंपनियां अपना मुनाफा।'
चेन्नई से अच्युत श्रीनिवासन ने लिखा- 'पेट्रोल पर आयात शुल्क खत्म करना चाहिए। कच्चे तेल पर कस्टम ड्यूटी कम करनी चाहिए। इसी तरह पेट्रोल पर अनाप-शनाप लगाया जाने वाला उत्पाद शुल्क भी कम करना चाहिए। साथ ही, सभी पेट्रो पदार्थों पर सब्सिडी बढ़ाई जानी चाहिए।'
भोपाल से सैयद मुमताज अली ने लिखा- 'पेट्रोल के बढ़ते दामों ने मानो आग लगा दी है। अभी कुछ वर्षों पहले तक मैं अपनी कार में ढाई हजार रुपए का पेट्रोल प्रति माह डलवाता था। अब सात हजार रुपए भी कम पड़ने लगे हैं। यह पेट्रोल तो हमें शायद कहीं का नहीं छोड़ेगा।'

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बेखबर पाकिस्तान!


ग्वालियर से मिथुन मोघे ने लिखा-
1. 'क्या ओसामा-बिन-लादेन के खात्मे की अमरीकी कार्रवाई 'ऑपरेशन एल्विस' की जानकारी पाकिस्तान को पहले से थी?
2. या फिर पाकिस्तान की राजधानी व उसकी सैन्य अकादमी के नाक तले छुपे ओसामा को अमरीकी सैनिकों ने खोज निकाला, गोलियों से भूना, लाश को साथ लेकर हेलीकॉप्टरों से उड़ गए और बेचारे पाकिस्तान को कोई खबर तक नहीं हुई?
  इन दोनों सवालों के जवाब चाहे वे हां में हो या ना में-पाकिस्तान के गले की हड्डी बन गए हैं जो न उगलते बन रही है न निगलते। आज पाकिस्तान एक ऐतिहासिक राष्ट्रीय शर्म के दौर से गुजर रहा है। उसे पूरी दुनिया धिक्कार रही है। इन हालात के लिए कोई और नहीं पाकिस्तान खुद जिम्मेदार है।'
उदयपुर से नरेन्द्र चतुर्वेदी ने लिखा- 'पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ शुजा पाशा और पाक सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी को अमरीकी ऑपरेशन की जानकारी नहीं थी- यह कोई नहीं मान सकता। ये दोनों ही पाकिस्तान के सर्वेसर्वा हैं। दोनों को मालूम था ओसामा कहां छुपा है। और यह भी साफ है दोनों को पहले से मालूम था कि अमरीका ऐबटाबाद में क्या करने जा रहा है? सवाल है ये दोनों सर्वशक्तिमान माने-जाने वाले पाक के 'भाग्य विधाता' आखिर खामोश क्यों रहे? क्यों उन्होंने 'ऑपरेशन एल्विस' का जरा सा भी प्रतिवाद नहीं किया? क्या किसी दूसरे राष्ट्र के  दस-बीस सैनिक लड़ाकू हेलीकॉप्टरों से आकर इतनी आसानी से सुरक्षित लौट सकते थे?'
प्रिय पाठकगण! ओसामा के खात्मे की अमरीकी कार्रवाई को लेकर भारतीय नागरिकों की क्या प्रतिक्रिया है? कहने को पाकिस्तान में लोकतंत्र है, लेकिन पाठक वहां राज सेना का ही मानते हैं। सवाल है, क्या कट्टरवादी पाक सेना पस्त हो चुकी है या फिर आईएसआई अपनी तयशुदा लाइन से पीछे हट गई है? क्या पाक की चुनी हुई सरकार बिलकुल नकारा है? क्या पाकिस्तान पूरी तरह से एक लुंजपुंज राष्ट्र बन चुका है? पाठकों की प्रतिक्रियाओं में इन सवालों के जवाब तथा भारतीय जनमानस की झलक भी देख सकते हैं।
इंदौर से प्रो. राजेन्द्र मोहन ने लिखा- 'जिस ऐबटाबाद में अमरीकी सैनिक हेलीकॉप्टर से उतरे वह पाकिस्तानी सेना का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। वहां आने वाले हर व्यक्ति पर सेना की कड़ी निगरानी रहती है। आश्चर्य है अमरीकी सैनिक आए और ओसामा को मारकर चले गए। क्या पाक सेना सो रही थी?'
रायपुर से राजशेखर ने लिखा-'अमरीका ने ओसामा को ढूंढ निकाला और मार गिराया। यह अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद को एक बहुत बड़ा झटका है। आतंककारियों को इसी तरह ढूंढ-ढूंढ कर मारना चाहिए। पाकिस्तान पर मुझे तरस आता है। वह अब भी झूठ बोल रहा है कि उसे ओसामा की कोई जानकारी नहीं थी।'
जयपुर से सुभाष चन्द्रा ने लिखा- 'पाकिस्तान के हुक्मरानों के पास और कोई चारा भी नहीं था। उन्हें पाकिस्तानी जनता के सामने अपनी खाल बचाने के लिए झूठ बोलना ही पड़ेगा।'
जबलपुर से देवेन्द्र सरीन ने लिखा- 'पाकिस्तान की जनता पाकिस्तानी शासकों को दोनों तरफ से बख्शने वाली नहीं है। चाहे उन्हें अमरीकी कार्रवाई की जानकारी थी तो भी, नहीं थी तो भी।'
बीकानेर से पी.सी. सुथार ने लिखा- 'अमरीका आतंकवाद से लड़ने के लिए पाकिस्तान को प्रतिवर्ष जो 15 हजार करोड़ रुपए देता था, सेना व गुप्तचर एजेंसियों के लोग उसे ऐय्याशियों में उड़ा देते थे। वे आतंककारियों से कभी नहीं लड़े। उल्टे उन्हें मदद करते रहे और मनमाफिक देश को लूटते रहे। आज पाकिस्तान की हालत इतनी खराब है कि अगर अमरीका कर्ज न दे तो पाक जनता को राशन पानी भी नसीब न हो।'
अजमेर से डॉ. सतीश ने लिखा- 'हो सकता है पाकिस्तान को अमरीकी कार्रवाई की बिलकुल भनक न पड़ी हो। पाकिस्तान में कुछ भी हो सकता है।'
भोपाल से प्रियांशु जैन ने लिखा- 'भारत को भी इसी तरह की कार्रवाई करनी चाहिए। पाकिस्तान में भारत के अपराधी ओसामा जैसे एक नहीं कई आतंककारी छिपे बैठे हैं। इनमें कई तो वहां खुलेआम देखे जाते हैं। भारत को मुम्बई बमकांड का सरगना दाउद इब्राहिम और भारतीय संसद पर हमले का दोषी मौलाना मसूद अजहर के साथ वही करना चाहिए जो अमरीका ने ओसामा के साथ किया।'
कोटा से रामसिंह तंवर ने लिखा- 'पाक अधिकृत कश्मीर में भारत के खिलाफ सक्रिय आतंककारियों के 42 शिविर हैं। शिविरों को हमें हमला करके नष्ट कर देना चाहिए।'
जोधपुर से करणसिंह भूणी ने लिखा- 'संपादकीय 'हम क्यों खामोश' (पत्रिका: 4 मई) पढ़कर प्रत्येक स्वाभिमानी भारतीय का मस्तक शर्म से झुका होगा, परन्तु सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेताओं को स्वाभिमान की जरा-सी भी परवाह नहीं है। भारत की कमजोर सरकार अब तक संसद पर हुए हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद मृत्युदंड देने में हिचकिचा रही है। उससे क्या उम्मीद करें।'
पाली से दीपक मेहता ने लिखा- 'मैं कलीम बहादुर के लेख 'अब तो सुधरे पाकिस्तान' (पत्रिका: 3 मई) से सहमत हूं। हमें पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए। सीधा हमला ठीक नहीं होगा।'
बेंगलूरु से सोमेन्द्र मैसी ने लिखा- 'ओसामा को खत्म करने के बाद अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा ने कहा- हम जो ठानते हैं कर दिखाते हैं। क्या भारत के प्रधानमंत्री भी पाक में छिपे आतंककारियों के लिए ऐसा कहेंगे?'

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