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जो आलोचना करेगा...

कँवल भारती की  फेसबुक पर प्रतिक्रियाएं यूपी सरकार को बुरी तरह खटक रही थी। उन्हें गिरफ्तार कर थाने में बिठा दिया गया। हमारी चुनी हुई सरकारें किस तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट रही हैं ये हम महाराष्ट्र में अशोक राव चव्हाण और प. बंगाल में ममता बनर्जी की सरकारों में भी देख चुके हैं। यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ती ही
जा रही है। 

फेसबुक पर मंत्री की आलोचना करके गिरफ्तारी झोल चुके दलित लेखक कँवल भारती पर अब उत्तर प्रदेश सरकार ने सूचना तकनीक कानून की धारा ६६-ए के तहत भी मुकदमा दर्ज किया है। फेसबुक पर टिप्पणी के बाद लेखक पर दो मुकदमे पहले ही दर्ज किए जा चुके थे। इस घटना की सोशल मीडिया में कड़ी निन्दा हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य सरकार को नोटिस देकर चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है। लेखक संगठन भी भारती की गिरफ्तारी और
उन पर जबरन दर्ज मुकदमों की भत्र्सना कर रहे थे। इन सबके बीच उम्मीद तो यह थी कि राज्य सरकार शर्मिन्दा होगी और मुकदमे वापस ले लेगी। लेकिन सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलते हुए बेशर्मीपूर्वक भारती पर एक और मुकदमा जड़ दिया। मानो सरकार सबकी अनसुनी करते हुए लेखकों को यह सबक सिखाने पर आमादा हो— 'सावधान! जो हमारे मंत्रियों की आलोचना करेगा, उसके साथ यही सलूक होगा।' सत्ता के नशे में चूर सरकार से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है। दलितों, अल्पसंख्यकों और पिछड़ों के नाम पर शासन में आई अखिलेश यादव की सरकार का एक दलित लेखक के साथ यह सलूक उसके तानाशाही चेहरे की बखिया उधेडऩे के लिए काफी है।
कँवल भारती एक प्रतिष्ठित लेखक हैं। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। उत्तर प्रदेश सहित देश के कई विश्वविद्यालयों में उनकी पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं। हां, यह जरूर है कि वे उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार के आलोचक हैं। अपनी बात को वे अपने लेखों और फेसबुक पर प्रतिक्रिया व्यक्त करके दर्ज कराते रहे हैं। इस बार जब उन्होंने दुर्गाशक्ति नागपाल के मामले में अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की तो सरकार की भृकुटी तन गई। आप जानते हैं देश-भर में व्यापक प्रतिरोध के बावजूद दुर्गाशक्ति के मामले में राज्य सरकार टस से मस नहीं हुई। यह बात भी जग-जाहिर है कि दुर्गाशक्ति उत्तर प्रदेश में शक्तिशाली रेत माफिया की आंखों में खटक रही थी और राज्य सरकार ने साम्प्रदायिक सौहार्द बिगडऩे की आड़ लेकर उसे अपने रास्ते से हटा दिया था। कमोवेश यही कहानी लेखक कँवल भारती के मामले में दोहराई गई। कँवल भारती ने फेसबुक पर दुर्गाशक्ति के निलम्बन की आलोचना करते हुए रामपुर में हुई ऐसी ही एक कथित घटना से तुलना की थी।
भारती की प्रतिक्रिया थी कि रामपुर में भी प्रशासन ने एक प्राचीन मदरसा गिरा दिया, लेकिन सरकार ने किसी अधिकारी को निलम्बित नहीं किया। क्योंकि यहां (रामपुर में) आजम खान का राज है और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। कँवल भारती की प्रतिक्रिया का यही वास्तविक आशय है। भारती ने यह भी लिखा—अखिलेश यादव की सरकार उत्तर प्रदेश में दुर्गाशक्ति नागपाल और आरक्षण के मामले में पूरी तरह नाकाम रही है। उत्तर प्रदेश में दरअसल चार मुख्यमंत्री हैं—अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव, आजम खान और मुलायम सिंह। राज्य में अपराधियों का बोलबाला है। जनता सरकार को कोस रही है, लेकिन ये लोग सत्ता के नशे में चूर हैं।
भारती की ये प्रतिक्रियाएं सरकार को बुरी तरह खटक रही थी। लिहाजा आड़ ली गई, वही साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे की। आनन-फानन में भारती को गिरफ्तार कर थाने में बिठा दिया गया। उन पर धारा 153-ए तथा 295-ए के तहत मुकदमे ठोंक दिए गए। भारती को संकीर्ण राजनीति के नजरिए से नहीं देखा जा सकता। उन्होंने 'कांशीराम के दो चेहरे' पुस्तक तब लिखी थी, जब उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी। वे दलित अतिवाद का भी विरोध करते रहे हैं। भारती की गिरफ्तारी और उन पर मुकदमों की चौतरफा निन्दा हुई। अभी अखिलेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का जवाब भी देना है। लेकिन हठधर्मिता देखिए। एक कदम आगे जाकर सरकार ने भारती पर हाल ही आई.टी. एक्ट के तहत भी एक मुकदमा और जड़ दिया।
 सारी कार्रवाई का उद्देश्य स्पष्ट है— लेखक को इस हद तक प्रताडि़त करना कि वह सरकार की आईन्दा आलोचना करना भूल जाए। तो यह है एक चुनी हुई सरकार का असली चेहरा, जिसका नेतृत्व एक युवा मुख्यमंत्री के हाथ में है। क्या अखिलेश यादव प्रतिरोध की हर आवाज को कुचल डालना चाहते हैं? दुर्गाशक्ति के मामले में साफ है कि कहीं कोई साम्प्रदायिक तनाव नहीं हुआ था।। हालात स्पष्ट थे कि न ही कोई ऐसी आशंका थी। दुर्गाशक्ति उन राजनेताओं की आंखों में भी खटक रही थी, जिनके हित रेत-माफियाओं से जुड़े थे।
कँवल भारती का मामला भी दीगर नहीं है। वे सरकार के कड़े आलोचक हैं। अपनी अभिव्यक्ति वे लिखकर व्यक्त करते हैं। उनका यह अधिकार संविधान-प्रदत्त है। लेकिन सरकार ने उनके इस अधिकार को साम्प्रदायिक रंग देकर कुचल दिया। यह तो दुर्गाशक्ति के मामले से भी जघन्य है। भारती के इस अधिकार को कुचलना यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कुचलना है। इसकी इजाजत किसी चुनी हुई सरकार को नहीं दी जा सकती। लेकिन हमारी चुनी हुई सरकारें किस तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट रही हैं ये हम महाराष्ट्र में अशोक राव चव्हाण और प. बंगाल में ममता बनर्जी की सरकारों में भी देख चुके हैं। यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में भी हम इसकी बानगियां देख चुके हैं। सरकारें असहमति के स्वरों को बेदर्दी से कुचलती जा रही है। न केवल सोशल मीडिया बल्कि संपूर्ण मीडिया-जगत और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में भरोसा रखने वालों के लिए यह चिन्ताजनक है।
कैदी बनेंगे पत्रकार
एक तरफ सरकारें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात कर रही हैं। दूसरी ओर तिहाड़ जेल के कैदियों की रचनाधर्मिता और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए उन्हें पत्रकार बनाने की तैयारी की जा रही है। तिहाड़ जेल के कैदी जल्दी ही एक मासिक समाचार पत्रिका का संपादन करेंगे, जो जेल प्रशासन की ओर से निकाला जाएगा। इस पत्रिका के लिए रिपोर्टिंग, प्रूफ रीडिंग और ग्राफिक्स डिजायनिंग आदि सारे कार्य कैदी ही करेंगे। तिहाड़ जेल की महानिदेशक विमला मेहरा के अनुसार इस समाचार पत्रिका का प्रकाशन अगले माह शुरू कर दिया जाएगा। पहले एडिटोरियल बोर्ड का गठन होगा, जिसमें पढ़े-लिखे कैदियों को शामिल किया जाएगा। ये बुद्धिजीवी कैदी ही सम्पादकीय टीम का गठन करेंगे। पत्रिका के प्रकाशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। कहा जा रहा है कि अब तिहाड़ जेल के कैदी न केवल अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति को स्वर देंगे, बल्कि अपनी पीड़ा को पत्रकारिता के माध्यम से जेल अधिकारियों तक बेबाकी से पहुंचाएंगे भी। चलो, कहीं तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चिन्ता की गई।

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